नमस्कार दोस्तो! मैं हूं शाश्वत अन्वेषण और आज है हमीरपुर के खंडहर का भाग 2…….
Table of Contents
हमीरपुर के खंडहर भाग 2

समय बहुत कम था| जल्दी दोनों ने मिलकर शेत्फ़ से पुरानी किताबें हटा वहाँ पर अपनी बंबई से लाई पुस्तकें सजा दीं। अब कमरा एक आजकल के युग के पढ़े-लिखे लड़के के कमरे जैसा लग रहा था। दीवार पर से पुराने कैलेंडर तथा देवी-देवताओं के
चित्र हटा विकी ने पहले ही बड़े-बड़े रंगीन पोस्टर लगा दिए थे | पलंग के पीछे दीवार
पर माइकल जैक्सन हाथों में माइक लिए गायन की मुद्रा में खड़ा था | सामने की दीवार पर क्रिकेट खिलाड़ी मुस्करा रहे थे तो दरवाजे पर हॉलीवुड के कलाकारों की भीड़ जमा थी।
“विकी, जब ज़रा अपने चेहरे को भी सँभालो | मैं जाकर फूल सजा दूँ!” कहते हुए पिंकी बाहर लपकी | द्वार पर मम्मी अल्पना सजाने में व्यस्त थीं |
story हमीरपुर के खंडहर भाग 2 storystorystory
हमीरपुर के खंडहर भाग 2 storystory हमीरपुर के खंडहर भाग 2 storystorystory
‘पिंकी, तू उधर से बना। झटपट काम खत्म हो जाएगा। वे आते ही होंगे।’
“ओह मम्मी, क्या बेकार का झँझट लेकर बैठी हो? मैं जा रही हूँ फूल सजाने |”
बरसात का समय, इस मौसम में चमेली व मोतिया की बहार थी, परंतु गुलाब व ग्लेडियोली नज़र नहीं आए। विवश हो पिंकी को मोतिए से ही काम चलाना पड़ा |
उनकी भीनी सुगंध बैठक में फैल गई । पिंकी ने असंतुष्ट दृष्टि से कमरे को देखा |
ऊँचे पहाड़ जैसी बाबा आदम ज़माने की नक्काशीदार कुर्सी, टेबल, पुराना कालीन व दीवारों पर न जाने किन-किन लोगों की फीकी पड़ती तस्वीरें। एक कोने में दादाजी की पुरानी जर्जर आरामकूुर्सी और एक ओर दादी की खंटिया भी। अतिथियों की क्या
धारणा होगी इस सजावट को देखकर?
पिंकी सोच में डूबी थी। तभी बाहर कार का हॉर्न सुनाई दिया। लगता था पापा उन लोगों को लेकर आ गए थे। मम्मी ने अल्पना बना ली थी और बाहर जा रही थीं | विकी तीर की तरह कमरे से निकल, बैठक से होते हुए, बरामदे की ओर भागा ।
‘आ गए,” वह चिल्लाया। उसके कमरे के खुले दरवाजे से आती संगीत की लहर घर में फैल रही थी। माइकल जैक्सन चीखते स्वर में गा रहा था।
पिंकी ने कॉलर सीधा किया। बाल पीछे झटककर वह धीरे-धीरे बाहर की ओर चली |
कैसे होंगे उसके विदेशी संबंधी? क्या उन्तका व्यवहार अपने इंडियन परिवार के प्रति मैत्रीपूर्ण होगा?

बादलों को पार कर जब हवाई जहाज़ दिल्ली के ऊपर मँडराया तो नीचे का दृश्य देख
पद््मिनी को कुछ निराशा ही हुई | क्या यही था वह भारत जिसके विषय में डैड ने इतना
कुछ बताया था? इंग्लैंड की हरियाली, ऊपर-नीचे फैले मैदानों व घाटियों के बाद यह
सपाट समतल भूमि कितनी नीरस व सूखी लग रही थी- चारों ओर एक अजीब सूखा,
धूल भरा पीला वातावरण था।
. एकाएक नीचे, सड़कों व मकानों के समूह दिखने लगे।
“यही है दिल्ली?” राहुल, जो नीचे उत्सुक दृष्टि गड़ाए देख रहा था, सीधा बैठ गया
और डैड से पूछा।
“हाँ,” डैड की आँखें खुशी से चमक रही थीं, “प्राचीन, ऐतिहासिक नगरी दिल्ली, जो
अनेक बार ध्वस्त होने के बाद पुनः उठ खड़ी हुई, वही दिल्ली है यह,” उनके स्वर में गर्व
था| वे बच्चों को दिल्ली का इतिहास एक बार फिर बताने लगे।
श्री विपिन प्रताप सिंह को भारत छोड़े लगभग पंद्रह वर्ष हो चुके थे। वे एक डॉक्टर
थे और विदेश में बस गए थे। उनकी पत्नी एलिजाबेथ ब्रिटिश थीं। अब वे इतने व्यस्त
हो गए थे कि चाहकर भी भारत नहीं आ पाते थे। परिवार भी बढ़ गया था। पूरे परिवार
को साथ लेकर आने में खर्च भी कुछ कम न होता | फिर भी वे एक बार सपरिवार आए
थे, जब राहुल और पद्मिनी केवल एक और दो वर्ष के थे। पद्मिनी और राहुल को वह
प्रथम यात्रा बिल्कुल भी याद नहीं थी।

अब वे फिर भारत आ रहे थे। परंतु इस बार मम्मी नहीं आ पाई थीं। तेरह वर्षीय
राहुल व चौदह वर्षीय पद्मिनी अपनी भारत यात्रा के विषय में इतने उत्सुक थे कि मम्मी
की अनुपस्थिति से उन्हें कोई कष्ट अनुभव नहीं हुआ। साथ में डैड तो थे। इंडिया यानी
भारत के बारे में उन्होंने डैड से कितना कुछ सुना था।
दूर रहते हुए भी विपिन प्रताप सिंह
के हृदय में अपने देश के लिए अपार प्रेम था। जिस भूमि पर उन्होंने अपना बाल्यकाल
बिताया उसे वे कैसे भूल सकते थे। विदेश में रहने तथा विदेशी पत्नी के होते हुए भी
उन्होंने अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति व परंपरा से परिचित कराने का पूरा प्रयास
किया था | हिंदी सिखाने के लिए उनके लिए अध्यापक रखा, घर में वे उनके साथ हिंदी
में ही बातचीत करते थे तथा भारत से संबंधित अनेक विषयों पर पुस्तकें भी लाकर देते।
जब समय मिलता वे उन्हें अपने देश के विषय में बताते |
आगे की कहानी अगले भाग में…
तबतक के लिए नमस्कार!!
References : NCERT Books Hamirpur ke khandhar
Feel free to share any comment suggestion or review below or visit our contact page for more help options…(pg12 end)