नमस्कार दोस्तो! मैं हूं शाश्वत अन्वेषण और आज है हमीरपुर के खंडहर का पहला भाग…….
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हमीरपुर के खंडहर
आज पिंकी और उसका छोटा भाई विकी बड़े प्रसन्न थे१ भात समुद्र पार इंग्लैंड से उनके
हमउम्र भाई-बहन राहुल व पद्मिनी जो आ रहे थे। यद्यपि वे उनके अपने चाचा श्री विपिन प्रताप सिंह के बच्चे थे फिर भी पिंकी व विकी की उनसे अब तक कभी मुलाकात
नहीं हुई थी।

पूरा परिवार अतिथियों के स्वागत की तैयारी में लगा था। दादा-दादी, पापा-मम्मी
और पिंकी व विकी ही नहीं, घर के नौकर, दाई, माली, चौकीदार इत्यादि सभी कई दिनों
से घर की सफ़ाई में लगे थे |
उस बेढ़ब पुराने भवन को साफ़-सुथरा बनाना आसान नहीं
था, फिर भी सब जी जान से जुटे थे। दादाजी ने न जाने कितने वर्षों बाद घर में पुताई
कराई |
फिर भी दीवारें उनके बंबई के फ्लैट के मुकाबले पुरानी व जर्जर ही दिखती थीं।
पापा ने सामने के बगीचे में लगा झाड़-झंखाड़ कटवाकर बाग को ठीक-ठाक करने की
चेष्टा की, परंतु आगे फिर भी बेतरतीब ही रहा और मम्मी किचन, ड्राइंगरूम द डाइनिंगरूम
में सब ओर भागती, नौकरों को डॉटती तथा दादी की भुनभुनाहट सुनतीं सफ़ाई में लगी
थीं, किंतु उन पुराने फ़र्नीचर से भरे कमरों को आखिर कितना सँवार पार्ती?
“पिंकी! ओ पिंकी!” एकाएक मम्मी का स्वर बाहर बरामदे से आया, “देख, चौके में
चावल पिसे रखे हैं। ज़रा द्वार पर अल्पना बना दे।”
पिंकी शीशे के सामने खड़ी बाल सँवार रही थी | बाल फिर बढ़ गए थे| उनको मॉडर्न स्टाइल में सजाना कठिन हो रहा था। पिंकी ने कंघी से बालों पर वार किया।
पिंकी,” मम्मी ने फिर पुकारा।
“ऊँह!” पिंकी ने कघी ड्रेसिंग टेबल पर पटकी और बाल पीछे झटकाकर, मम्मी के पास
आकर कहा, “अब एक घंटा बैठकर अल्पना कौन बनाए? मुझे तैयार भी तो होना है।”
अभी तैयार नहीं हुई? इतनी देर से क्या कर रही हो?” मम्मी के स्वर में झुँझलाहट
थी। “चल ज़रा मदद कर दे।
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“रहने भी दो अल्पना, मम्मी। इन चीजों में उनको क्या दिलचस्पी होगी? मैं एक
» अच्छा-सा फ्लार डेकोरेशन कर दूँगी।’
तेरह वर्षीय पिंकी ने ब्लाउज़ कें कॉलर को सीधा खींचते हुए फिर एक बार शीशे पर
दृष्टि डाली। अपने नाईलॉन के लेस वाले ब्लाउज़ तथा जींस में वह कितनी स्मार्ट लग
: रही थी।
उसकी विदेशी बहन पद्मिनी समझ जाएगी कि इंडिया में स्मार्ट लड़कियों की
कमी नहीं है। कैसा नाम था पद्मिनी का, बिल्कुल देशी! लेकिन अवश्य ही उसका कुछ
छोटा मॉडर्न नाम भी होगा, जैसे पैडी या मिनी या कुछ और।
पिंकी, यानी पल्लवी सिंह मन ही मन मुस्करा उठी। उसके मम्मी-पापा ने दोनों
भाई-बहन का नाम छोटा रखकर अच्छा किया था। अचानक उसे विकी का खयाल
आया। वह जहाँ होता वहाँ से शांति कोसों दूर रहती.,| परंतु आज यह सन्नाटा कैसा?
पिंकी ने अपने गुलाबी सैंडिलों का बकल लगाया, शीशे में एक बार फिर अपने को देखा,
और विकी के कमरे की ओर बढ़ी |
पहले तो उसका भाई कहीं दिखाई नहीं दिया। फिर आहट सुन पिंकी ने कोने में
रखी अलमारी की ओर देखा | किवाड़ खुले थे | विकी उनकी ओट में बैठा अंदर से कुछ
निकाल रहा था।
अरे, वहाँ कोने में बैठे क्या कर रहे हो विकी? तुम तैयार नहीं हुए? वे लोग आते
ही होंगे। |
तैयार तो>हूँ।” अंदर से विकी की आवाज़ आई।
“क्या ऐसे ही तैयार .हुआ जाता है?” विकी के बिखरे, धूल भरे बाल, टेढ़ी टाई व जूते
के खुले लेस देखकर पिंकी ने डॉँटा। नटखट विकी को डॉट-फटकार कर ठीक रखना
पिंकी की आदत-बन गई थी।

पर विकी भी फटकार सुनने का आदी था। विकी वही करता जो उसका मन कहता।
मैं इन हार्डी बॉईज और हिचकॉक की इंग्लिश किताबें निकालकर शेत्फ़ पर सजाना
चाहता हूँ। ज़रा उनको भी पता चले हम कितनी किताबें पढ़ चुके हैं।”
बाहों में ढेर सारी पुस्तकें उठाए विकी अलमारी की ओट से निकला ।
“कहाँ लगाओगे? शेठ्फ़ तो दादाजी की लाई पुरानी पोथियों की लाइन लगी है
पिंकी ने व्यंग्य कसा |
“महाभारत, वीर अभिमन्यु, महाबैली हनुमान, रामायण…. और न जाने क्या-क्या?”“हटाओ उन सबको |” विकी ने आज्ञा दी, “चलो, उन्हें अलमारी में ठूँस दें | उनकी
जगह यह सब रंग-बिरंगी इंग्लिश की किताबें ज्यादा जचेंगी।”
आगे की कहानी अगले भाग में…
तबतक के लिए नमस्कार!!
References : NCERT Books Hamirpur ke khandhar
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